ईरान बनाम इज़राइल संघर्ष: Middle East में क्यों बढ़ रहा है टकराव

Iran vs Israel Conflict Latest Update: Middle East की दो प्रमुख ताक़तें – ईरान और इज़राइल – एक बार फिर आमने-सामने हैं। हाल के हफ्तों में दोनों देशों के बीच तनाव ने एक नया मोड़ ले लिया है। यह सिर्फ एक क्षेत्रीय विवाद नहीं, बल्कि इससे global politics और world peace दोनों प्रभावित हो सकते हैं।

Conflict की Background – पुरानी दुश्मनी, नई रणनीति

ईरान और इज़राइल का यह झगड़ा कोई नया नहीं है। Decades से इन दोनों देशों के बीच ideological और strategic differences चलते आ रहे हैं।

  • ईरान मानता है कि इज़राइल Middle East में एक “illegal Zionist state” है।
  • वहीं इज़राइल को डर है कि ईरान की nuclear capability और proxies (जैसे Hezbollah, Hamas) उसके लिए बड़ा threat बन सकती है।

2010 के बाद से Iran की Nuclear Program और Israel के covert operations ने इस टकराव को और खतरनाक बना दिया है।

अभी हाल में, इज़राइल ने Syria और Lebanon में कई airstrikes किए जिसमें ईरान के जुड़े हुए ठिकाने निशाना बनाए गए। इसके जवाब में ईरान की तरफ से कुछ retaliatory attacks की खबरें भी आई हैं।

April-May 2025 के दौरान tensions बहुत तेज़ हुए, जब Israel ने दावा किया कि Iran-backed militias ने उसके northern border पर हमला किया।

Iran और Israel का टकराव सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं है। इसमें दुनिया की बड़ी ताक़तों की भी indirect involvement है:

  • अमेरिका (USA): Israel का सबसे बड़ा ally है और हर बार उसका diplomatically और militarily साथ देता है।
  • रूस और चीन: ये दोनों ईरान के साथ strategic relations बढ़ा रहे हैं – चाहे वो oil deals हों या defense cooperation.

इसलिए ये विवाद अब सिर्फ regional न रहकर geopolitical chessboard का हिस्सा बन चुका है।

आप सोच सकते हैं कि Middle East का conflict भारत से क्या लेना-देना? लेकिन:

  • Oil Import: भारत अपनी तेल ज़रूरतों का 80% से ज़्यादा आयात करता है। Iran-Israel conflict से crude oil के prices तुरंत बढ़ जाते हैं।
  • NRI Safety: लाखों भारतीय Gulf countries में काम कर रहे हैं – instability वहाँ उनकी safety पर असर डाल सकता है।
  • Diplomatic Balance: भारत के अच्छे संबंध दोनों देशों से हैं – इसलिए यह balancing act और मुश्किल हो जाता है।

इस लड़ाई की एक और front है – social media. दोनों देशों के समर्थक platforms जैसे Twitter, Telegram, और YouTube पर narratives फैलाते हैं। इसमें fake news, propaganda और hate speech का बोलबाला है।

User को सच और अफवाह में फर्क करना ज़रूरी है।

Experts का मानना है कि:

  • Iran और Israel दोनों full-scale war नहीं चाहते क्योंकि इससे उनकी economy और stability को बड़ा नुकसान होगा।
  • लेकिन proxy conflicts, cyber-attacks और regional skirmishes लगातार बने रह सकते हैं।

United Nations और other mediators को urgently peace process शुरू करना होगा, वरना यह conflict uncontrollable हो सकता है।

इस तनाव का असर सिर्फ Tehran और Tel Aviv तक सीमित नहीं, बल्कि इसकी गूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है। भारत जैसे देशों के लिए यह समय है संभलकर diplomatic steps लेने का – ताकि energy security और geopolitical interest दोनों safe रह सकें।

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